होली
होली के रंगों ने मिला दिए दिल -- भर दिया दिलो में प्यार का अबीर ;
बच्चो ने सुबह से ही पकड़ी पिचकारी -- अपनों को भिगो कर हसी हँसी प्यारी |
युवाओ की टोलिया भी निकल पड़ी सारी -- रंग और अबीर लिए गधे की सवारी ;
लडकियों की टोलियों ने खूब मौज मरी -- चहरे पे गुलाल मल दूर-२ भागी ||
घर का माहोल हुवा जैसे फुलवारी -- घर के बड़ो ने भंग पी मारी ;
भंग के नसे में झूमते है सारे -- हसते लोट्ते ठिठोलिया मचाते |
हसने में लोटपोट बात कह डाली -- गुजिया चुरा के मैने सारी खा डाली ;
माँ ने अचार खालो जिद कर डाली -- हमने मिठाई की मांग कर डाली ||
निकलती है टोलिया और घुटती है भंग -- ऐसा है हमारा मधुर होली का मिलन ;
होली का त्यौहार याद कान्हा त्रिपुरारी -- गोपियों के संग महारास की तैयारी |
राधिका के संग खेले कान्हा होली प्यारी -- गोरे-गोरे गालो पे गुलाल मल डाली ;
राधिका का गोरा रंग सवारिया के संग -- राधिका छुडाये क्यों सवारिया का रंग ||
राधा गोरी श्याम कारे खेले होली संग -- छूटे से छुडाये नहीं सावरे का रंग ;
गोपियों के मन में भी कान्हा जी का रंग -- अतः सब देखती है प्रेम में मगन |
कान्हा ने भी गोपियों के भाप लिए मन -- हर गोपी दिखने लगी सावरे के संग ;
कभी राधा बाहों में कभी गोपी संग -- कान्हा पूरे डूबे है गोपियों के रंग ||
अवध की धूल भी हुई तब धन्य -- धूल जब पा गई पैरो की शरण ;||