रविवार, 8 अप्रैल 2012

आजादी  तो है मगर गुलाम है आदमी ,
सरकारी माहौल  से परेसान है आदमी ।
तोहफे में जिंदगी की परेसानिया मिली,
इतने पर भी महगाई  से करता घमासान आदमी।
अंग्रेजो के राज में परेसान था आदमी ,
जुल्मोसितम से मरता था आम आदमी ।
कैसे कह दे माहौल में तबदीली आ गई ,
अब भी घावों जख्मो से जूझे भारती ।
नेताओ ने तो भर ली आपनी तिजोरिय, 
विदेशों में सात पुश्तो का धन जमा करा लिया।
हर वक़्त नोचते है ये इंसानी जिस्म को,
फिर भी तरसते है ये इंसानी गोस्त को ।
जिंदा को तो मार कर मुर्दा बना दिया,
मुर्दों के भी जिस्म से सोदा किया बड़ा ।
नेताओ ने छीन ली है चैन स्वाश की ,
कैसे कहे के तकलीफ में है मेरी भारती ।
नेताओ ने तो झूठ की झड़िया लगा रखी ,
वादों पे झूठे वादे कर बोटो की ऐठ की ।
आता है पैसा बेसक आदमी के नाम पर,
मालुम है सभी को पैसा जायेगा किस डगर।
इंसानी जिंदा लाशो पर नेता जी है खड़े, 
हस्ते मुस्कुराते वो कह रहे है ये ।
मरना तो तेरा तय है ए आम आदमी ,
हम ही तो है शासक ए गुलाम  आदमी ।
by--> Amit kumar gupta