रविवार, 9 फ़रवरी 2014

बस तुम ही हो

यादो में तुम हो ,ख्वाबो में तुम हो ,
अल्मारी की सारी किताबो में तुम हो ,
सब्जी में नमक नहीं है ये भूला ,
कैसे कहू उसके स्वादों में तुम हो  |

चंदा में तुम हो सूरज में तुम हो ,
घनी काली रातो की बातो में तुम हो,
नदिया में तुम हो सागर में तुम हो ,
मेरे कंठ कि व्याकुल प्यासो में तुम हो |

माँ ने कहा था जरा उसको देखो ,
चूल्हे की  रोटी जरा सी समेटो ,
मै  भूला था सब क्योकि रोटी मै वो थी,
नज़रो का धोका और उसकी महक थी |

कैसे कहू सारी रोटी जली थी ,
और माँ के चिमटे से मार पड़ी थी,
मगर  मुझकॊ दर्द होना कहा था ,
उल्टा  हसी  मुझसे सध न रही थी |

चाय जो बनी थी चीनी कहा थी ,
पत्ती भी उसमे हा ना डली थी ,
मगर फिर भी उसमे उसकी महक थी,
और मुझको  वही चाय मीठी लगी थी |

बाजार से मैने फल जो ख़रीदे ,
कच्चे ही कच्चे जरा ना पके थे,
नजरिया ये औरो का था उन फलो पर,
मुझे तो वो डाली पके से लगे थे |

 क्यों ऐसा है  होता  लगता नहीं मन ,
क्यों  यादो से उसकी  हटता नहीं मन,
क्यों मुझको ना होती अब कोई टेंशन ,
यारो बताओ कुछ तो सलूशन |
 by ----Amit Kumar Gupta