शनिवार, 7 मार्च 2015

Ipsita

पहली दफा तुमसे मै जब मिला था ,
मालुम ना था मुझको तुम तो हो इच्छा ।
चहरे पे तेरे कुछ तो था जादू ,
और मै सहजता से तुम तक था पंहुचा  ॥

तुम भी निडर थी सरल भी तो तुम थी ,
चहरे पे सूरज का तेज लिए थी ।
दिखने में ओस् की बूंदे हो तुम तो ,
जो हमको हीरे से बढ़ कर लगी थी ॥

सच -सच कहूगा मै था डरा सा ,
मैने जब पूछा था नाम तुम्हारा ।
कैसे मै भूलू वो नाम बताना ,
तुमने ज्यो मुझको था मामू बनाया॥

मगर मै तो खुश था बातो से तेरी ,
तेरा हँसता चेहरा जो यादो में मेरी ।
यही मेरी चाहत और इच्छा भी मेरी ,
हसती रहो तुम जीवन भर यूँ  ही ॥