आज फिर माता पुकारे अपने सिंघी पूतो को ;
क्रांति लाने की खातिर आओ अब तो बढ़ चलो ।
चुप ना बैठो घर में तुम शैलाब का हिस्सा बनो ;
देश को चाहत है तेरी हो सके तो रक्त दो ।।
हौशला इतना बढ़ा लो रक्त रंजित हो समां ;
हो सके तो आज खेलो खून की तुम होलिया ।
आखो से भड़काओ शोले नसों से चिनगारिया ;
दे दो अपने शीश को और जीत लो तुम ये जहाँ ।।
आज फट जाने दो धरती और सारा आसमा ;
आंधिया तोड़ेगी दम अब सीना है चट्टान का ।
बूँद हम छोटी सही पर हममे भी एक आग है ;
भ्रस्ताचारी लोगो की अब बचनी केवल राख है ।।
कर्मो का फल है ये मेरे मोका ये मुझको मिला ;
देश के ही प्राण है ये उसका हक़ मुझपे खरा ।
चाह है केवल समर्थन माग ले चाहे प्राण भी ;
हस के में ये प्राण दूंगा है ये मेरी भारती ।।
अब कदम पीछे न हटते बढ़ चली है टोलिया ;
इन्किलाबी नारों से अब गूंजता है ये समां ।
बेसक दहल जायेगे दिल द्रश्य जब देखेगा वो;
आखो में आया लहू भारती मेरा शीश लो।।
by--Amit Kumar Gupta
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