भारत माता की शान है संघ भारत माँ का अभिमान है संघ
भारत माँ के चरणों में तो संघ का जीवन है अर्पण
वीरो की ललकार है संघ जिससे दुश्मन थर्राता है
केवल पद संचलन मात्र से दुश्मन काँपा सा जाता है
संघ निनाद जय भारत माता जब जोरो से हो जाता है
धरती अम्बर गुंजायमान दुश्मन कम्पित सा लगता है
जब संघ संचलन करता है गुब्बार धूल का उठता है
चंद समय के लिए सही वो सूरज को ढक लेता है
जब वन्दे मातरम कहता है संघ भारत माँ पुलकित हो जाती है
हर स्वमसेवक का अपने हाथ से विजय तिलक वो करती है
अब बज जो गया है युद्ध शंख माँ तुमसे विदाई चाहेंगे
तेरी रक्षा की खातिर तो हम अपना शीश चढ़ा देंगे
फिर संघ बढ़ा दुश्मन की तरफ दुश्मन में हाहाकार मचे
दुश्मन को वो चीरे फ़ाड़े और सिंघो जैसा गर्ज करे
हमने काटे है धड़ से सर मुण्डो को रुण्डो से अलग किया
शस्त्र विहीन होकर भी हमने शेरों जैसा युद्ध किया
जब अंत समय आता है तो हम हाथ जोड़ मुस्काते है
जिस्मो से बहती रक्त धार पर फूले नहीं समाते है
हे धरती माँ गर खुश है तो वरदान एक ही चाहेंगे
रचित -- अमित कुमार गुप्ता
भारत माँ के चरणों में तो संघ का जीवन है अर्पण
वीरो की ललकार है संघ जिससे दुश्मन थर्राता है
केवल पद संचलन मात्र से दुश्मन काँपा सा जाता है
संघ निनाद जय भारत माता जब जोरो से हो जाता है
धरती अम्बर गुंजायमान दुश्मन कम्पित सा लगता है
जब संघ संचलन करता है गुब्बार धूल का उठता है
चंद समय के लिए सही वो सूरज को ढक लेता है
जब वन्दे मातरम कहता है संघ भारत माँ पुलकित हो जाती है
हर स्वमसेवक का अपने हाथ से विजय तिलक वो करती है
अब बज जो गया है युद्ध शंख माँ तुमसे विदाई चाहेंगे
तेरी रक्षा की खातिर तो हम अपना शीश चढ़ा देंगे
फिर संघ बढ़ा दुश्मन की तरफ दुश्मन में हाहाकार मचे
दुश्मन को वो चीरे फ़ाड़े और सिंघो जैसा गर्ज करे
हमने काटे है धड़ से सर मुण्डो को रुण्डो से अलग किया
शस्त्र विहीन होकर भी हमने शेरों जैसा युद्ध किया
जब अंत समय आता है तो हम हाथ जोड़ मुस्काते है
जिस्मो से बहती रक्त धार पर फूले नहीं समाते है
हे धरती माँ गर खुश है तो वरदान एक ही चाहेंगे
मरकर फिर से गर जन्मु तो भारत ही जननी चाहेंगे
रचित -- अमित कुमार गुप्ता