बुधवार, 1 जनवरी 2014

इंकलाब

सिंहो कि जो धरती है  वहा  एक शैर आया है ,
हमारी भारती का एक चहेता पूत आया है |
तिरंगा शान से लहराता रहे यू ही हिमालय पर ,
कि देखो एक दीवाना इस हिमालय पर भी आया है ||

देश के गद्दारो  को जरा  देखो मेरे बंधू ,
के इनकी ठाठ ने इनको जमी से दूर कर डाला |
जिस मिटटी पर ये जन्मे आचल तले  खेले ,
उसी माँ को जख्मो का खजाना इनने दे डाला ||

मगर अब भारती के जख्मो को पढ़ने लगे है हम ,
देकर आहूति जख्म को भरने लगे है हम |
राजनीति करना तुम्हे अब हम सिखायेगे,
गर माँ जो मागे प्राण तो हॅस कर लुटाएंगे ||

हर युवा कि अब नसो में बह रहा है इंकलाब ,
और वो अब बढ़ रहा है उठ रहा है एक गुबार |
है कसम इस सर-जमि की राख कर देगे उन्हें,
लूटते  है देश को जो  खादी      को पहने हुवे ||

by--Amit Kumar Gupta

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