हो महक तुम जो हवा में , फैली है सर्वत ही
सादगी तेरी है मोहक ,दिखती है अंयर्त ही
जब से तुम सा दोस्त पाया ,कमी न लगती मुझे
आसमा में घूमता हू ,जमी न दिखती मुझे
गैरो कि नज़रे तो कहती,खास तुम दिखते नहीं
और नज़र मेरी ये कहती, आम तुम लगते नहीं
सच कहू तो मैने सीखा ,तुम से हर पल ये सदा
आँधी में डटते है कैसे ,जीतते कैसे जहाँ
सादगी तेरी है मोहक ,दिखती है अंयर्त ही
जब से तुम सा दोस्त पाया ,कमी न लगती मुझे
आसमा में घूमता हू ,जमी न दिखती मुझे
गैरो कि नज़रे तो कहती,खास तुम दिखते नहीं
और नज़र मेरी ये कहती, आम तुम लगते नहीं
सच कहू तो मैने सीखा ,तुम से हर पल ये सदा
आँधी में डटते है कैसे ,जीतते कैसे जहाँ
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