रविवार, 20 अप्रैल 2014

अपकी बार मोदी सरकार

जिनकी बातो से इरादे आक लेते है सभी,
जिनके आने भर से बैरी रण छोड़ देते है सभी;
भारती के दर्द को जो महसूस करता है   सदा,
मोदी है वो लाल जिसपे भारती भी है फ़िदा |
छाती चौड़ी मन है उजला स्वेत जिसकी आत्मा,
चलता है जो सिंह सा और बोले तो है गर्जना;
सिंह तुम ऐसे ही गरजो भारतीय कामना,
और दिलो में खौफ भर दो दुश्मनो के तुम सदा |
दो दहाड़े इसतरह की चीर दे जो आसमा,
और फिर पंजे पटक दो फाड़ दे जो ये धरा;
उस धरा से पीक निकले फिर से उस संकल्प की,
विश्र्व गुरु बनके रहेगा थी सिकांगो में कही |
By--Amit Kumar Gupta

रविवार, 9 फ़रवरी 2014

बस तुम ही हो

यादो में तुम हो ,ख्वाबो में तुम हो ,
अल्मारी की सारी किताबो में तुम हो ,
सब्जी में नमक नहीं है ये भूला ,
कैसे कहू उसके स्वादों में तुम हो  |

चंदा में तुम हो सूरज में तुम हो ,
घनी काली रातो की बातो में तुम हो,
नदिया में तुम हो सागर में तुम हो ,
मेरे कंठ कि व्याकुल प्यासो में तुम हो |

माँ ने कहा था जरा उसको देखो ,
चूल्हे की  रोटी जरा सी समेटो ,
मै  भूला था सब क्योकि रोटी मै वो थी,
नज़रो का धोका और उसकी महक थी |

कैसे कहू सारी रोटी जली थी ,
और माँ के चिमटे से मार पड़ी थी,
मगर  मुझकॊ दर्द होना कहा था ,
उल्टा  हसी  मुझसे सध न रही थी |

चाय जो बनी थी चीनी कहा थी ,
पत्ती भी उसमे हा ना डली थी ,
मगर फिर भी उसमे उसकी महक थी,
और मुझको  वही चाय मीठी लगी थी |

बाजार से मैने फल जो ख़रीदे ,
कच्चे ही कच्चे जरा ना पके थे,
नजरिया ये औरो का था उन फलो पर,
मुझे तो वो डाली पके से लगे थे |

 क्यों ऐसा है  होता  लगता नहीं मन ,
क्यों  यादो से उसकी  हटता नहीं मन,
क्यों मुझको ना होती अब कोई टेंशन ,
यारो बताओ कुछ तो सलूशन |
 by ----Amit Kumar Gupta

बुधवार, 1 जनवरी 2014

इंकलाब

सिंहो कि जो धरती है  वहा  एक शैर आया है ,
हमारी भारती का एक चहेता पूत आया है |
तिरंगा शान से लहराता रहे यू ही हिमालय पर ,
कि देखो एक दीवाना इस हिमालय पर भी आया है ||

देश के गद्दारो  को जरा  देखो मेरे बंधू ,
के इनकी ठाठ ने इनको जमी से दूर कर डाला |
जिस मिटटी पर ये जन्मे आचल तले  खेले ,
उसी माँ को जख्मो का खजाना इनने दे डाला ||

मगर अब भारती के जख्मो को पढ़ने लगे है हम ,
देकर आहूति जख्म को भरने लगे है हम |
राजनीति करना तुम्हे अब हम सिखायेगे,
गर माँ जो मागे प्राण तो हॅस कर लुटाएंगे ||

हर युवा कि अब नसो में बह रहा है इंकलाब ,
और वो अब बढ़ रहा है उठ रहा है एक गुबार |
है कसम इस सर-जमि की राख कर देगे उन्हें,
लूटते  है देश को जो  खादी      को पहने हुवे ||

by--Amit Kumar Gupta