चाहत मै अपनी छुपाता भी कैसे ;
गम बस यही है बता भी ना पाया |
महसूस करता था तेरे लिए मै जो;
महसूस तुझको करा भी ना पाया |
चाहत ये थी तुझको जग की दूँ खुशिया ;
इस चाहत को तुझ पर लुटा मै ना पाया |
पागल था मै तेरी चाहत में इतना;
चाहत है कितनी जता भी ना पाया |
ख्वाहिश थी मेरी के गम तेरे ले लू ;
ख्वाहिश को पूरा कहा कर मै पाया |
चाहत यही थी लबो को हँसा दू;
खुशियों का राहो में जमघट लगा दू |
खुशिया ही खुशिया हो झोली में तेरी;
कोशिश भी की पर निभा में ना पाया |
चाहत यही थी की पा लू में तुझको ;
मालूम नहीं तुमको पा क्यों ना पाया |
क्या गलती हुई मुझसे समझा नहीं मै ;
चाहा के पूछु -कहा पूछ पाया |
अ;गर तुमको दिक्कत थी मुझसे तो कहती ;
कहना ना चाहो तो सम्मुख तो आती |
अ;गर जो में पढ़ लेता आख़े तुम्हारी ;
तो मै जान जाता तुम क्या चाहती हो |
चाहत मेरी तुमको रोने ना देती ;
जो तुम चाहती तो में बन जाता पलके |
झड़ने ना देता आखो से आंसू ;
बन जाता काजल और शोभा बढाता |
अ;गर दिल पे रखती जो तुम हाथ अपने ;
सवालो का मन मै जो एक दौर चलता |
हिला देता तुमको तुम्हारे मनस को ;
तो तुम जान जाती भाषा दिलो की |
मै था तुम्हारा अपना ही लेकिन ;
अपनापन तुमको जाता भी ना पाया |
बाते दिलो मै बहुत सी है लेकिन;
बातो को जुबा तक कहा ला मै पाया |
अहसास है कुछ भीने से मन मै ;
वो भीनी सी खुसबू कहा पा मै पाया |
डरता था मै तुमको खोने से लेकिन ;
खोने के डर से कहा पा मै पाया |
चाहत यही तुझको जीते जी पा लू ;
बाहों में भरकर कही में छुपा लू |
मुमकिन नहीं जो ये अ;गर तू ना चाहे ;
ख्वाहिश अधूरी तू पूरा करा दे |
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