जिस द्रश्य में तुमने पहनी है साड़ी ,
आसमा को ज्यो तुमने आँचल बनाया |
इठलाती है तब से कुदरत भी खुद पे ,
तुम सा सितारा संग में तो आया |
बढ़ा दी है तुमने प्रकृति की चाहत ,
इतना क्यों खुद को प्यारा बनाया |
शांत सी दिखती हो चहरे से लेकिन ,
चंचलता को तुमने मन में छुपाया |
छुपा है जो मन में वो सब को दिखा दो ,
एक उजला सा चंदा जो मन में बसाया |
सीपी सी दिखती हो ऊपर से लेकिन ,
मोती को तुमने सबसे बचाया |
मै बात करता हूँ मन की तुम्हारे ,
तपा के जिसे तुमने कुंदन बनाया |
by --- Amit kumar gupta
आसमा को ज्यो तुमने आँचल बनाया |
इठलाती है तब से कुदरत भी खुद पे ,
तुम सा सितारा संग में तो आया |
बढ़ा दी है तुमने प्रकृति की चाहत ,
इतना क्यों खुद को प्यारा बनाया |
शांत सी दिखती हो चहरे से लेकिन ,
चंचलता को तुमने मन में छुपाया |
छुपा है जो मन में वो सब को दिखा दो ,
एक उजला सा चंदा जो मन में बसाया |
सीपी सी दिखती हो ऊपर से लेकिन ,
मोती को तुमने सबसे बचाया |
मै बात करता हूँ मन की तुम्हारे ,
तपा के जिसे तुमने कुंदन बनाया |
by --- Amit kumar gupta
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