यादो में तुम हो ,ख्वाबो में तुम हो ,
अल्मारी की सारी किताबो में तुम हो ,
सब्जी में नमक नहीं है ये भूला ,
कैसे कहू उसके स्वादों में तुम हो |
चंदा में तुम हो सूरज में तुम हो ,
घनी काली रातो की बातो में तुम हो,
नदिया में तुम हो सागर में तुम हो ,
मेरे कंठ कि व्याकुल प्यासो में तुम हो |
माँ ने कहा था जरा उसको देखो ,
चूल्हे की रोटी जरा सी समेटो ,
मै भूला था सब क्योकि रोटी मै वो थी,
नज़रो का धोका और उसकी महक थी |
कैसे कहू सारी रोटी जली थी ,
और माँ के चिमटे से मार पड़ी थी,
मगर मुझकॊ दर्द होना कहा था ,
उल्टा हसी मुझसे सध न रही थी |
चाय जो बनी थी चीनी कहा थी ,
पत्ती भी उसमे हा ना डली थी ,
मगर फिर भी उसमे उसकी महक थी,
और मुझको वही चाय मीठी लगी थी |
बाजार से मैने फल जो ख़रीदे ,
कच्चे ही कच्चे जरा ना पके थे,
नजरिया ये औरो का था उन फलो पर,
मुझे तो वो डाली पके से लगे थे |
क्यों ऐसा है होता लगता नहीं मन ,
क्यों यादो से उसकी हटता नहीं मन,
क्यों मुझको ना होती अब कोई टेंशन ,
यारो बताओ कुछ तो सलूशन |
by ----Amit Kumar Gupta
अल्मारी की सारी किताबो में तुम हो ,
सब्जी में नमक नहीं है ये भूला ,
कैसे कहू उसके स्वादों में तुम हो |
चंदा में तुम हो सूरज में तुम हो ,
घनी काली रातो की बातो में तुम हो,
नदिया में तुम हो सागर में तुम हो ,
मेरे कंठ कि व्याकुल प्यासो में तुम हो |
माँ ने कहा था जरा उसको देखो ,
चूल्हे की रोटी जरा सी समेटो ,
मै भूला था सब क्योकि रोटी मै वो थी,
नज़रो का धोका और उसकी महक थी |
कैसे कहू सारी रोटी जली थी ,
और माँ के चिमटे से मार पड़ी थी,
मगर मुझकॊ दर्द होना कहा था ,
उल्टा हसी मुझसे सध न रही थी |
चाय जो बनी थी चीनी कहा थी ,
पत्ती भी उसमे हा ना डली थी ,
मगर फिर भी उसमे उसकी महक थी,
और मुझको वही चाय मीठी लगी थी |
बाजार से मैने फल जो ख़रीदे ,
कच्चे ही कच्चे जरा ना पके थे,
नजरिया ये औरो का था उन फलो पर,
मुझे तो वो डाली पके से लगे थे |
क्यों ऐसा है होता लगता नहीं मन ,
क्यों यादो से उसकी हटता नहीं मन,
क्यों मुझको ना होती अब कोई टेंशन ,
यारो बताओ कुछ तो सलूशन |
by ----Amit Kumar Gupta