रविवार, 12 अगस्त 2012

शैलाब

आज  फिर माता  पुकारे       अपने सिंघी पूतो को   ; 
क्रांति लाने  की खातिर         आओ अब तो बढ़ चलो ।
चुप ना बैठो घर में तुम          शैलाब का हिस्सा बनो  ;
देश को चाहत है तेरी         हो सके तो रक्त दो ।।

हौशला इतना बढ़ा लो       रक्त रंजित हो समां ;
हो सके तो आज खेलो      खून की तुम होलिया ।
आखो से भड़काओ शोले     नसों से चिनगारिया ;
दे दो अपने शीश को और     जीत लो तुम  ये जहाँ ।। 

आज फट जाने दो धरती       और सारा आसमा ;
आंधिया   तोड़ेगी दम अब        सीना है चट्टान  का ।
बूँद हम छोटी सही  पर             हममे  भी एक आग  है  ;
भ्रस्ताचारी  लोगो की अब        बचनी केवल राख है ।।

कर्मो का फल है ये मेरे        मोका ये मुझको मिला ;
देश के ही प्राण है ये            उसका हक़ मुझपे खरा ।
चाह है केवल समर्थन           माग ले चाहे प्राण भी ;
हस के में ये प्राण दूंगा         है ये मेरी भारती ।।

अब कदम पीछे न हटते        बढ़ चली है टोलिया ;
इन्किलाबी  नारों से अब          गूंजता है ये समां ।
बेसक दहल जायेगे दिल         द्रश्य  जब देखेगा वो;
आखो में आया लहू                भारती मेरा शीश लो।।
                                                  by--Amit Kumar Gupta

रविवार, 8 अप्रैल 2012

आजादी  तो है मगर गुलाम है आदमी ,
सरकारी माहौल  से परेसान है आदमी ।
तोहफे में जिंदगी की परेसानिया मिली,
इतने पर भी महगाई  से करता घमासान आदमी।
अंग्रेजो के राज में परेसान था आदमी ,
जुल्मोसितम से मरता था आम आदमी ।
कैसे कह दे माहौल में तबदीली आ गई ,
अब भी घावों जख्मो से जूझे भारती ।
नेताओ ने तो भर ली आपनी तिजोरिय, 
विदेशों में सात पुश्तो का धन जमा करा लिया।
हर वक़्त नोचते है ये इंसानी जिस्म को,
फिर भी तरसते है ये इंसानी गोस्त को ।
जिंदा को तो मार कर मुर्दा बना दिया,
मुर्दों के भी जिस्म से सोदा किया बड़ा ।
नेताओ ने छीन ली है चैन स्वाश की ,
कैसे कहे के तकलीफ में है मेरी भारती ।
नेताओ ने तो झूठ की झड़िया लगा रखी ,
वादों पे झूठे वादे कर बोटो की ऐठ की ।
आता है पैसा बेसक आदमी के नाम पर,
मालुम है सभी को पैसा जायेगा किस डगर।
इंसानी जिंदा लाशो पर नेता जी है खड़े, 
हस्ते मुस्कुराते वो कह रहे है ये ।
मरना तो तेरा तय है ए आम आदमी ,
हम ही तो है शासक ए गुलाम  आदमी ।
by--> Amit kumar gupta


सोमवार, 19 दिसंबर 2011

madhavi

जिस  द्रश्य में तुमने पहनी है साड़ी ,  
                                आसमा को ज्यो  तुमने आँचल बनाया |
इठलाती है तब से कुदरत भी खुद पे ,
                                तुम सा  सितारा  संग में तो आया |
बढ़ा दी है तुमने प्रकृति की चाहत ,
                                इतना क्यों खुद को प्यारा बनाया |
शांत सी दिखती हो चहरे से लेकिन  ,
                              चंचलता को तुमने  मन में छुपाया |
छुपा है जो मन में वो सब को दिखा दो ,    
                              एक उजला सा चंदा जो मन में बसाया |
सीपी सी दिखती हो ऊपर से लेकिन  ,
                              मोती को तुमने सबसे बचाया |
मै बात करता हूँ  मन की तुम्हारे ,
                             तपा के जिसे तुमने कुंदन  बनाया |
                                                  by --- Amit kumar gupta

मंगलवार, 6 दिसंबर 2011

suma

इस तस्वीर में तुम बहुत चंचल हो मगर,
                                          क्यों छूवा है तुमको किरणों ने इस कदर |
हर अंग में उमंग की लहर सी दोड़ गई ,
                                         अनायास तुम्हारे चहरे पर हसी बिखर गई |
के तुम  मासूम हो इस द्रश्य में बहुत ,
                                        तकलीफे तेरी हसी से हटती है खुदबखुद |
के तुम नायाब हो अपने आप में,
                                        जैसे मोती बंद हो सीपी के साथ में |
                                               by--Amit kumar gupta

"जता मै ना पाया "


चाहत मै अपनी छुपाता भी कैसे ;
                                         गम बस यही है  बता भी  ना पाया |
महसूस करता था तेरे लिए मै जो;
                                        महसूस  तुझको करा भी ना पाया |
चाहत ये थी तुझको जग की दूँ खुशिया ;
                                       इस चाहत को तुझ पर  लुटा मै ना पाया |
पागल था मै  तेरी चाहत में इतना;
                                     चाहत है कितनी जता भी ना पाया |
ख्वाहिश थी मेरी के गम तेरे ले लू ;
                                    ख्वाहिश को पूरा कहा कर मै पाया |
चाहत यही थी लबो को हँसा दू;
                                  खुशियों का राहो में जमघट लगा दू |
खुशिया ही खुशिया हो झोली में तेरी;
                                  कोशिश  भी की पर निभा में ना पाया |
चाहत यही थी की पा लू में तुझको ;
                                  मालूम नहीं तुमको पा क्यों ना पाया |
क्या गलती हुई मुझसे  समझा नहीं मै ;
                                  चाहा के पूछु -कहा पूछ पाया |
अ;गर तुमको दिक्कत थी मुझसे तो कहती ;
                                 कहना ना चाहो तो सम्मुख तो आती |
अ;गर जो में पढ़ लेता आख़े तुम्हारी ;
                                 तो मै जान जाता तुम क्या चाहती हो |
चाहत मेरी तुमको रोने ना देती ;
                                 जो तुम चाहती तो में बन जाता पलके |
झड़ने ना देता  आखो से आंसू ;
                                 बन जाता काजल और शोभा  बढाता |
अ;गर दिल पे रखती जो तुम हाथ अपने  ;
                                  सवालो का मन मै जो एक दौर चलता |
हिला देता तुमको तुम्हारे मनस को ;
                                 तो तुम जान जाती भाषा  दिलो की |
मै था तुम्हारा अपना ही लेकिन  ;
                                 अपनापन तुमको जाता भी ना पाया |
बाते दिलो मै बहुत सी है लेकिन;
                                 बातो को जुबा तक कहा ला मै पाया |
अहसास है कुछ भीने से मन मै ;
                                वो भीनी सी खुसबू कहा पा मै पाया |
डरता था मै तुमको खोने से लेकिन ;
                                खोने के डर से कहा पा मै पाया |
चाहत यही तुझको  जीते जी पा लू ;
                                 बाहों में भरकर कही में छुपा लू |
मुमकिन नहीं जो ये अ;गर तू ना चाहे ;
                                  ख्वाहिश अधूरी तू पूरा करा दे |


रविवार, 27 फ़रवरी 2011

होली

                                                     होली 

होली  के  रंगों  ने  मिला  दिए  दिल        -- भर  दिया  दिलो में  प्यार  का अबीर ;
बच्चो  ने  सुबह से  ही  पकड़ी  पिचकारी -- अपनों को भिगो कर हसी हँसी प्यारी |
युवाओ की टोलिया भी निकल पड़ी सारी -- रंग और अबीर लिए गधे की सवारी ;
लडकियों  की टोलियों  ने खूब मौज मरी -- चहरे  पे गुलाल  मल  दूर-२  भागी ||

घर  का  माहोल  हुवा  जैसे  फुलवारी     --  घर  के  बड़ो  ने  भंग  पी  मारी ;
भंग   के   नसे   में   झूमते  है   सारे      -- हसते  लोट्ते  ठिठोलिया  मचाते |
हसने  में  लोटपोट  बात  कह  डाली      -- गुजिया चुरा के मैने सारी खा डाली ;
माँ  ने  अचार  खालो  जिद   कर  डाली -- हमने मिठाई  की मांग कर डाली ||

निकलती है टोलिया और घुटती  है  भंग -- ऐसा है हमारा मधुर होली का मिलन ;
होली का त्यौहार  याद  कान्हा त्रिपुरारी  -- गोपियों के संग महारास की तैयारी |
राधिका के संग खेले कान्हा होली प्यारी -- गोरे-गोरे गालो पे गुलाल मल डाली ;
राधिका का गोरा रंग  सवारिया  के संग -- राधिका छुडाये क्यों सवारिया का रंग ||

राधा गोरी  श्याम कारे खेले  होली  संग  -- छूटे से छुडाये नहीं  सावरे का रंग ; 
गोपियों के मन में भी कान्हा जी का रंग -- अतः सब देखती  है प्रेम में मगन |
कान्हा ने भी गोपियों के भाप लिए मन -- हर गोपी दिखने लगी सावरे के संग ;
कभी  राधा  बाहों  में  कभी   गोपी  संग -- कान्हा  पूरे  डूबे  है  गोपियों के रंग ||

अवध  की  धूल  भी  हुई  तब  धन्य     -- धूल  जब  पा  गई  पैरो  की  शरण ;|| 










शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

मात्र वीरो

घुसपेठ  हुई अब दुश्मनो की ----  जख्म देने की कला
छीनना  खुशिया हमारी      ---- इनका मकसद हो गया 
अब तो सारी हदे तोड़ी    ----     लाँघ कर इंसानियत 
मासूमो को भी कत्ल करते ----  धर्म के ये नाम पर
अब तो जागो मात्र वीरो    ----- इनको अब तो दो पछाड़ 
खेलो होली खून से और    ----- रक्त रंजित कर विशाल ||

पीठ पर खंजर चला है     ----   पाक की घटिया मिसाल
चीन भी इनका समर्थक   ----   दोगला ; करता प्रहार 
हिंदी चीनी भाई भाई      ----   अब वो नारा ना रहा
चीनी को दिल से निकालो ---   भाई वो प्यारा ना रहा
इनकी नज़रे उठ गई है   ----   भारती के कांधो पर
अब तो तुम रुकना नहीं  ----   फोड़ इनकी आंखे तक ||

काट दो हर अंग  उसका  ----  सरहदों को जो छुए 
खौफ इतना भर दो इनमे ---  भारती का नाम ले 
जयकार भारत की करे   ---- आँखों में दहशत दिखे 
भीख मांगे मौत की और ---- हस के हम वो दे सके
दुश्मनो से जंग  होगी   ----  जोश मय होगा समां
सर कटाने मर कर बचाने --  जब बढ़ेगी टोलिया ||
आज लग जायेगा जमघट  -- जंग के मैदान में 
खून से लतपथ सिंघो को  ---- देखना मैदान में
हिंद  की  सेना  है  ये   -----   ललकारती आगे बढ़ी
घाव लगे; सिर भी कटे  ----   फिर भी ये बढती जाएगी
गोलिया बोछार सी      ----  बारूद  भी दीपावली 
खून निकले तो समझ लो --  खिल रही है होली ही ||

हिंद के वीरो को देखो   ----  खून से लतपथ दिखे 
जैसे कोख से सिंघनी की --   वो अभी जन्मे हुवे 
आग भी भुझ  जाती है जब--खून से स्पर्श हो
गोलियों की क्या मजाल ---- पाँव डगमग भी ना हो
सर  कटे  तो  धड सही  ----   बढ़ चले बिन सर के ही
दुश्मनो की मौत को तो ----   चाहिए बस हाथ ही ||

सर तो कर डाला समर्पित ---- भारती की रक्षा की
मस्तको  पे  धूल  है       ----  स्वीकार करती भारती
सहसा बादल गरज उट्ठे  ----  भारती हुंकारती 
दुश्मनो के दिल धड़क गए --  इस तरह वो गर्ज थी
एक मस्तक देखते ही    ----  सैकड़ो की टोलिया
गर्वे से फिर फूल  उठते  ----  कहके ये तो सिंह था ||

और फिर शोले धधकने ----  उनकी आँखों में लगे
रोके  भी  रुकते  नहीं   ----  खून के प्यासे हुए
पवन भी लपटे बनी   ----    दहकता है अब समां
दुश्मनो के खून से    ----    तिलक को आतुर यहाँ
छू वा है जिन दुश्मनो ने --  भारती के जिस्म को
है सजा मर कर भी ये  ---- पाने ना पाए कब्र को
मौत इनको इसकदर  दो -- जन्म लेने से डरे
मिल भी जाये जन्म तो ये--वन्दे मातरम ; ही कहे 
मिल भी जाये जन्म तो ये--वन्दे मातरम ; ही कहे ||||
                                          by-Amit Kumar Gupta







गुरुवार, 14 अक्तूबर 2010

" महक"

महक उठा है यादो से      -----            मेरा तो पूरा तन मन ;
तेरी यादो की महक ने मुझको ------  कर डाला पूरा पावन |
तेरा ये चंचल सा मन   ---------------जैसे  हो कोई मधुवन ;
मधुवन को महकती तुम  ----------- जैसे  हो कोई  चन्दन ||


आखे तेरी मोहक है   --------------- उस पर तेरे तीखे नयन ;
हमको घायल कर जाती है ----   दे प्यार की मोहक यादो संग |
मुखड़ा तेरा चंदा जैसा  ---------  आकाश में हो तुम तारो संग ;
साथ जरा मेरा भी दो  ------------  महका दो मेरा जीवन  ||


आवाज़ से जैसे कोकिल हो  ------ स्वर करते शीतल गुंजन ;
अंतर्मन फिर महक सा जाता -------सुन प्यारी सी तेरी धुन |
चलती हो तुम जैसे भवर ------------ रस फूलो का लेके उड़े ;
बदले में परिवर्तन देती   -----------कली से उसको फूल करे ||
फूल तभी मुस्काता है  -------------महक को और लुटाता है ;
बागो में शोभित हो करके ----------गीत मिलन के गाता  है ||


याद है तेरा मुस्काना       ----- गम को भी मोहक कर जाना ;
कण-२ को पुलकित करती तुम-- हर कण को फिर महका जाना | 
पायल जब तेरी बजती है   ---------दीवाना हमको करती है ;
राहे कितनी भी मुस्किल हो ------- राहे अड़चन ना बनती है ||


अब तो है केवल ये आशा ------------- ऊपर वाले से ये माँगा ; 
महक को भी महका जाओ  ---- तुम मेरे जीवन में आ जाओ |
अंतर में मेरे बस जाओ --------आखो का काजल बन जाओ ;
मेरे दिल में अब तुम ही तुम-- मेरे दिल की धड़कन  बन जाओ ||
AMIT KUMAR GUPRA
CONTACT NO.9039884725